आईवीएफ (In vitro fertilization – IVF) तकनीक से खिलखिला रहा है बचपन। यह गर्भधारण के लिए एक कारगर तकनीक है। निसंतानता या बांझपन की बीमारी से विश्व भर में 12 -15% दंपति गर्भधारण नहीं कर पा रहे हैं। इस कंडीशन में सबसे पहले किसी अच्छे फर्टिलिटी विशेषज्ञ से पुरुष और महिला दोनों को जांच करानी चाहिए। निसंतानता इलाज के लिए आज काफी सारी प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं जैसे – आईयूआई, आईवीएफ (In vitro fertilization – IVF), लैप्रोस्कोपिक, हिस्ट्रोस्कोपी आदि।
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महिलाओं में इनफर्टिलिटी के कारण – IVF
पोलिसिस्टिक सिंड्रोम
- यह समस्या अगर कम उम्र में पता चल जाए तो इसका इलाज बेहतर हो सकता है। इसमें महिला के गर्भाशय में पुरुष हार्मोन एंड्रोजन का स्तर बढ़ जाता है परिणामस्वरूप ओवरी में सिस्ट बनने लग जाते हैं।
- यह समस्या महिलाओं में हार्मोनल असंतुलन, मोटापा या तनाव के कारण उत्पन्न होती है।
- शरीर में अत्यधिक चर्बी होने की वजह से एस्ट्रोजेन हार्मोन की मात्रा बढ़ने लगती है जिससे ओवरी में सिस्ट बनता है।
- कई मामलों में जेनेटिकली भी यह समस्या पाई जाती है।
- यह लगभग 15 से 40 वर्ष के दौरान होता है, इसमें महिला का अंडा समय पर बनकर फूट नहीं पाता। जिससे गर्भधारण करना कठिन होता है।
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Hypothalamic Amenorrhea

(In vitro fertilization – IVF)
- हाइपोथैलमस एक ग्रंथि है जो शरीर में हार्मोन के उत्पादन को नियंत्रित करता है। यह तनाव, अत्यधिक वजन घटाने या जोरदार व्यायाम के परिणामस्वरूप विकसित हो सकती है।
- इस परिस्थिति में अक्सर महिलाओं का मासिक धर्म प्रभावित होता है, जिससे बांझपन जैसी समस्या हो सकती है।
Premature Amenorrhea
- इसे प्रीमेच्योर ओवेरियन फेल्योर या प्राइमरी ओवेरियन Insufficiency भी कहा जाता है। यह समस्या अंडो की कम मात्रा के कारण होती है।
- अंडे का उत्पादन अपर्याप्त होना भी Premature Menopause का एक कारण होता है। इसमें महिलाओं में ओवरी 40 वर्ष से पहले ही अपना कार्य करना बन्द कर देती है।
Endometriosis
- यह ओवरी में होने वाली समस्या है। 25 से 40 आयु वर्ग की महिलाओं में पेट दर्द और गर्भ धारण ना कर पाने की यह काफी बड़ी वजह है।
- इस समस्या के होने पर Endometrium को ढकने वाले Tissues ओवरीज या गर्भाशय के आसपास की जगहों पर विकसित होने लगती है।
- पीरियड्स के समय खून की गांठें ओवरी में जमा होने लगती हैं। इस वजह से आंतें, ट्यूब्स और ओवरिज आपस में चिपक जाती है।
- यह खतरनाक हो सकता है क्योंकि इसकी वजह से ट्यूब्स और ओवरी दोनों को नुक़सान पहुंचता है जो बांझपन का कारण बन सकता है।
फेलोपियन ट्यूब
- महिलाओं के शरीर में दो ट्यूब होती हैं। हर महीने ओवरी में अंडा फेलोपियन ट्यूब में आता है इस दौरान संबंध बनने पर शुक्राणु अंडे में प्रवेश कर जाता है जिससे भ्रूण बनने की शुरुवाती प्रक्रिया पूरी हो जाती है।
- इसके बाद भ्रूण गर्भाशय में चला जाता है और जन्म लेने तक यही विकसित होता है। लेकिन फेलोपियन ट्यूब में ब्लॉकेज, इंफेक्शन होने पर औरत मां नहीं बन सकती।
- इसे दवाओं से ठीक किया जा सकता है या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से गर्भ धारण किया जा सकता है।
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आईवीएफ तकनीक (In vitro fertilization – IVF Technique)

(In vitro fertilization – IVF)
- टेस्ट ट्यूब बेबी प्रक्रिया यानी इन विट्रो फर्टिलाइजेशन ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अंडे और शुक्राणुओं का शरीर के बाहर फर्टिलाइजेशन कराया जाता है।
- इस प्रक्रिया में महिला के अंडाशय में सामान्य से ज्यादा अंडे विकसित किए जाते हैं जिन्हें बाद में Embryology Lab में Fertilize करवाया जाता है और भ्रूण विकसित किया जाता है।
- इस भ्रूण को 2 से 5 दिन लैब में ही विकसित करके महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। जब गर्भधारण के सभी उपाय नाकाम रहते हैं तो यह इलाज कारगर साबित हो सकता है।
आईवीएफ का खर्चा कितना आता है? – (IVF Cost)
- आईवीएफ (In vitro fertilization – IVF) का खर्चा 90 हजार से लेकर 1,50,000 रुपए तक हो सकता है पर यह कुछ लोगों की जांचो पर भी निर्भर करता है।
- महिला के अंडाशय में सामान्य से अधिक अंडे बनाने के लिए कुछ दिनों तक उसे लगभग 10 से 12 इंजेक्शन लगाए जाते हैं जिससे अंडे विकसित हो सके।
- इस तकनीक में तीन प्रकार के इंजेक्शन का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें यूरिनरी इंजेक्शन का खर्चा करीब 20 से 25 हजार रुपए, Highly Purified Injection में 30 से 50 हजार रुपए और Recombinant Injection में 80 से 90 हजार तक खर्च होते हैं। बाकी मरीज की दवाओं के अनुसार खर्चे होते हैं।
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Fertility केन्द्र का चुनाव किन बातों पर निर्भर करता है ? – IVF
- सफलता दर के आधार पर
- मरीज को उचित समय देना
- गर्भवती महिला की व्यक्तिगत उपचार योजना
- सभी फर्टिलिटी योजना एक ही स्थान पर उपलब्ध हो
- सभी मानदंडों पर खरी गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली व प्रयोगशाला
- अनुभवी व योग्य चिकित्सको की टीम
- प्रतिबद्धता
- रियायती दर पर इलाज प्रक्रिया
- पारदर्शिता
- मरीज को समय समय पर उचित मार्गदर्शन एवं परामर्श
- सभी प्रमुख शहरों में अच्छी तरह से जुड़ा हुआ
आईवीएफ की चार नई तकनीक – (Types of IVF Techniques)

(In vitro fertilization – IVF)
पहली तकनीक
- आइसीएसआई (ICSI) मतलब इंट्रो साइटोपलास्मिक स्पर्म इंजेक्शन है। इस तकनीक का इस्तेमाल उस स्थिति में किया जाता है, जब पुरुष में स्पर्म की संख्या कम होती है।
- इसकी मदद से पुरुष के सीमेन में से स्वस्थ शुक्राणु को चुना जाता है और स्त्री के एग में इंजेक्ट कर दिया जाता है जिसके बाद यह फर्टिलाइज हो जाता है।
- इसके बाद भ्रूण को स्त्री के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
- इस तकनीक के सफलता की संभावना अधिक रहती है।
- ज़ीरो शुक्राणु की स्थिति में सीधे टेस्टिस में शुक्राणु लेकर पिता बनाया जा सकता है।
दूसरी तकनीक
- लेजर हैचिंग की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब महिला की उम्र ज्यादा हो या पहले कोई बीमारी रही हो।
- ऐसी महिलाओं के भ्रूण की बाहरी परत मोटी हो जाती है इस कारण भ्रूण उसे तोड़कर बाहर बच्चेदानी पर चिपक नहीं पाता है।
- लेजर असिस्टेड हैचिंग प्रक्रिया में भ्रूण की बाहरी परत को लेजर द्वारा कमजोर कर दिया जाता है जिससे गर्भधारण की संभावना औसत से अधिक हो जाती है।
तीसरी तकनीक
- सामान्यतया भ्रूण को 2 से 3 दिन लैब में रखा जाता है जबकि ब्लास्टोसिस्ट कल्चर प्रक्रिया में भ्रूण को लैब में ही 5 या 6 दिन तक विकसित किया जाता है फिर प्रत्यारोपित किया जाता है।
- इस तकनीक में सफलता की संभावना अधिक रहती है।
चौथी तकनीक
- Intracytoplasmic Morphologically Selected Sperm Injection (IMSI) तकनीक उन पुरुषों के लिए लाभप्रद हो सकती है जिनके स्पर्म की मात्रा 5 मिली लीटर से कम हो तथा गुणवत्ता में कमी हो।
- माइक्रोस्कोप में स्पर्म को 6000 गुना बड़ा करके देखा जाता है जिससे उसमें छुपे विकार को आसानी से देखा जा सकता है जो एक सामान्य या स्वस्थ स्पर्म को चुनने में मदद करता है।
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